स्टार्ट ऐट द एंड (Start at the End) में हम देखेंगे कि एक प्रोडक्ट को हम लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर
कैसे डिज़ाइन कर सकते हैं। यह किताब बताती है कि किस तरह से आप रीसर्च की मदद से
अपने प्रोडक्ट को डिजाइन कर उसे कामयाब होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं।
यह किसके लिए है Start at the End Summary in Hindi
-वे जो एक नया प्रोडक्ट मार्केट में
लाँच करना चाहते हैं।
-वे जो एक प्रोडक्ट डिजाइनर हैं।
-वे जो बिहेवियोरल साइकोलाजी को
समझना चाहते हैं।
लेखक के बारे में ( Start at the End Summary in Hindi)
मैट वालार्ट (Matt Wallaert) एक बिहेवियर साइंटिस्ट और एक आन्त्रप्रिन्योर हैं जो कि पिछले 15 सालों से लोगों के बर्ताव को समझने की कोशिश कर रहे हैं। वे फार्च्यून 500 कंपनियों के साथ साथ बहुत से सोशल
प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर चुके हैं। इस समय वे क्लोवर हेल्थ के चीफ बिहेवियोरल
आफिसर हैं।
Start at the End Summary in hindi यह किताब आपको
क्यों पढ़नी चाहिए?
एक नया प्रोडक्ट सिर्फ आपकी जिन्दगी को
आसान नहीं बनाता, वो आपके बर्ताव को भी बदल देता है। वो आपके काम करने
के तरीके को बदल देता है। एग्ज़ाम्पल के लिए जीयो को ले लीजिए। जब 2017 में मुकेश अंबानी ने जीयो को लांच किया, उसके बाद से
लोगों का इंटरनेट इस्तेमाल करना बढ़ गया। लोग ज्यादा यूट्यूब चलाने लगे, ज्यादा टिक-टाक चलाने लगे। लोग अपने घर बैठे फ्रीलैंसिंग के जरिए पैसे
कमाने लगे। उस एक प्रोडक्ट ने हमारे काम करने के तरीके को बदल दिया।
इसलिए जब भी आप किसी नए प्रोडक्ट पर काम कर
रहे हों, तो उससे सिर्फ पैसे कमाने के बारे में मत सोचिए। सबसे पहले आपको खुद से यह
सवाल पूछना चाहिए कि आप अपने प्रोडक्ट से लोगों में किस तरह के बर्ताव को पैदा
करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद आपको उस प्रोडक्ट को डिजाइन करना चाहिए। यह
किताब बताती है कि आप यह काम किस तरह से कर सकते हैं।
Start at the End Summary in hindi -इसे
पढ़कर आप सीखेंगे
-अंत से शुरुआत करना किस तरह से
आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।
-किस तरह से आप यह पता कर सकते हैं
कि लोग आपका प्रोडक्ट क्यों इस्तेमाल करेंगे और क्यों नहीं इस्तेमाल करेंगे।
-अपने प्रोडक्ट को आपको किस तरह से
लाँच करना चाहिए।
Start at the End Summary in hindi-एक प्रोडक्ट को
बनाने के लिए सबसे पहले आपको मार्केट की जरूरत का एक अंदाजा होना चाहिए।
जिस प्रक्रिया की मदद से हम अपने ग्राहक की
जरूरत का पता लगाते हैं, उसे Intervention Design Process (IDP) कहते हैं। इस प्रक्रिया को अच्छे से समझने के लिए हम माइक्रोसोफ्ट के सर्च
इंजन बिंग का एग्ज़ाम्पल लेते हैं।
2012 में लेखक माइक्रोसोफ्ट के साथ
काम कर के उनके लिए एक नया सर्च इंजन बनाने का काम कर रहे थे। वहाँ पर उनकी टीम ने
एक अंदाजा लगाया - स्कूल में बहुत से बच्चे हैं जो कि अपने सवालों का जवाब पाना
चाहते हैं, लेकिन उन्हें उन सवालों के जवाब नहीं मिलते।
इसलिए वे बिंग का इस्तेमाल करेंगे और इसकी मदद से अपनी जरूरत को पूरा करेंगे।
यहाँ पर असल जिन्दगी में बच्चों के पास
अपने सवालों के जवाब जानने का कोई साधन नहीं है। और जो जिन्दगी माइक्रोसोफ्ट उन
बच्चों को देना चाहता है, उसमें वे अपने हर सवाल का जवाब आसानी से खोज सकते
हैं। इस तरह से असल जिन्दगी और खयाली जिन्दगी के बीच में एक गैप है, जिसे भरने का काम उनका प्रोडक्ट "Bing" करेगा।
लेकिन अब तक यह सिर्फ एक अंदाजा है।
माइक्रोसोफ्ट के पास इसे सही साबित करने के लिए अब तक कोई डाटा या सबूत नहीं था।
ऊपर से देखने पर तो यह अंदाजा सही लगता है, लेकिन अपने अंदाजे को सही मानने
की गलती कभी मत कीजिए। हमेशा सर्वे या किसी दूसरे जरिए से अपने अंदाजे का
क्वालिटेटिव या क्वांटिटेटिव एनालिसिस कर के देखिए कि वो डिमान्ड मार्केट में है
भी या नहीं।
यही काम माइक्रोसोफ्ट ने किया। वे स्कूलों
में गए और उन्होंने पाया कि उनका अंदाजा सही है। एक बच्चा एक दिन में सिर्फ 1 सर्च ही
कर रहा था, जिसका मतलब था कि वो अपने सारे सवालों का जवाब
नहीं पा पा रहा था। इस तरह से असल जिन्दगी और खयाली जिन्दगी के बीच वाकई एक गैप
था।
Start at the End Summary in hindi-यह पता लगने के
बाद माइक्रोसोफ्ट ने अपने प्रोडक्ट पर काम करना शुरू किया।
अपने ग्राहक की जरूरतों को समझने के बाद यह
लिखिए कि किस तरह से आपका प्रोडक्ट उनके बर्ताव को बदलेगा।
इस सबक में हम जानेंगे कि किस तरह से आप
अपने प्रोडक्ट का एक बिहेवियोरल स्टेटमेंट (Behavioral Statement) बना सकते
हैं। बिहेवियोरल स्टेटमेंट एक वाक्य होता है, जिसमें आप अपने
ग्राहक की जरूरत के साथ साथ यह लिखते हैं कि किस तरह से आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल
कर के वो उस जरूरत को पूरा करेगा। इसमें 5 चीजें आती हैं
जिसे समझने के लिए हम ऊबर (Uber) का एक्साम्पल लेंगे।
सबसे पहला है वो बर्ताव तो आप
अपने प्रोडक्ट की मदद से अपने ग्राहकों में डालने की कोशिश कर रहे हैं। यह बर्ताव
अक्सर होता है - आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल करना। ऊबर के लिए यह बर्ताव था - जरूरत
पड़ने पर लोग ऊबर का इस्तेमाल करेंगे।
दूसरा है वो लोग जो कि
आपके उस प्रोडक्ट को इस्तेमाल करेंगे। क्या आपके ग्राहक बच्चे हैं? बूढ़े हैं?
वे कहाँ रहते हैं? ऊबर(ubber) के लिए उसका ग्राहक हर वो व्यक्ति था जो कि एक टैक्सी ले सकता था।
तीसरा हिस्सा है - मोटिवेशन। वो
कौन सी समस्या है जिससे छुटकारा पाने के लिए लोग आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल करने
के लिए मोटिवेट होंगे? या आपका प्रोडक्ट किस तरह से लोगों को खुशी दे रहा
है? ऊबर को इस्तेमाल करने के लिए मोटिवेशन था - एक जगह से
दूसरी जगह पर जाना। जब भी लोगों को कहीं जाने की ख्वाहिश होगी, वे ऊबर लेंगे।
चौथा हिस्सा है - कौन सी चीजें
हैं जो लोगों को आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल करने से रोक सकती है? कौन सी
चीजें हैं जो आपके ग्राहक के पास पहले से होनी चाहिए ताकि वो आपके प्रोडक्ट को
आसानी से इस्तेमाल कर सके? एग्ज़ाम्पल के लिए अगर आपको एक
ऊबर बुक करना है, तो आपके पास एक स्मार्टफोन, एक इंटरनेट कनेक्शन और ऑनलाइन पैसे देने का एक जरिया होना चाहिए। 2009
में जब यह कंपनी लाँच हुई थी, उस वक्त ज्यादा
लोगों के पास यह साधन नहीं थे। साथ ही ऊबर उस समय सिर्फ सैन-फ्रांसिस्को के लोगों
को ही यह सर्विस दे सकता था। अगर लोगों को ऊबर इस्तेमाल करना होगा, तो यह वो चीजें थीं जो उनके पास पहले से होनी चाहिए थीं।
पाँचवाँ है वो डाटा जिसकी
मदद से आप यह जान पाएंगे कि लोग आपका प्रोडक्ट इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं। ऊबर
के लिए यह डाटा था - राइड्स। लोग अगर ज्यादा राइड्स लेंगे, तो ऊबर
समझ जाएगा कि उसका प्रोडक्ट इस्तेमाल किया जा रहा है।
अंत में आप इन पाँचों चीजों को मिलाकर एक
बिहेवियोरल स्टेटमेंट लिखते हैं। ऊबर के लिए यह बिहेवियोरल स्टेटमेंट कुछ ऐसा है -
जब लोगों को कहीं जाना होगा और उनके पास एक स्मार्टफोन, इंटरनेट
कनेक्शन और आपलाइन पेमेंट करने का एक जरिया होगा, और वो सैन
फ्रान्सिस्को में रहते होंगे, तो वे एक ऊबर लेंगे, जिसे हम राइड्स की मदद से नापेंगे।
Start at the End Summary in hindi -एक
प्रोडक्ट को बनाने के लिए सबसे पहले आपको मार्केट की जरूरत का एक अंदाजा होना
चाहिए।
जिस प्रक्रिया की मदद से हम अपने ग्राहक की
जरूरत का पता लगाते हैं, उसे Intervention Design Process (IDP)
कहते हैं। इस प्रक्रिया को अच्छे से समझने के लिए हम माइक्रोसोफ्ट
के सर्च इंजन बिंग का एग्ज़ाम्पल लेते हैं।
2012 में लेखक माइक्रोसोफ्ट के साथ
काम कर के उनके लिए एक नया सर्च इंजन बनाने का काम कर रहे थे। वहाँ पर उनकी टीम ने
एक अंदाजा लगाया - स्कूल में बहुत से बच्चे हैं जो कि अपने सवालों का जवाब पाना
चाहते हैं, लेकिन उन्हें उन सवालों के जवाब नहीं मिलते।
इसलिए वे बिंग का इस्तेमाल करेंगे और इसकी मदद से अपनी जरूरत को पूरा करेंगे।
यहाँ पर असल जिन्दगी में बच्चों के पास
अपने सवालों के जवाब जानने का कोई साधन नहीं है। और जो जिन्दगी माइक्रोसोफ्ट उन
बच्चों को देना चाहता है, उसमें वे अपने हर सवाल का जवाब आसानी से खोज सकते
हैं। इस तरह से असल जिन्दगी और खयाली जिन्दगी के बीच में एक गैप है, जिसे भरने का काम उनका प्रोडक्ट "Bing" करेगा।
लेकिन अब तक यह सिर्फ एक अंदाजा है।
माइक्रोसोफ्ट के पास इसे सही साबित करने के लिए अब तक कोई डाटा या सबूत नहीं था।
ऊपर से देखने पर तो यह अंदाजा सही लगता है, लेकिन अपने अंदाजे को सही मानने
की गलती कभी मत कीजिए। हमेशा सर्वे या किसी दूसरे जरिए से अपने अंदाजे का क्वालिटेटिव
या क्वांटिटेटिव एनालिसिस कर के देखिए कि वो डिमान्ड मार्केट में है भी या नहीं।
यही काम माइक्रोसोफ्ट ने किया। वे स्कूलों
में गए और उन्होंने पाया कि उनका अंदाजा सही है। एक बच्चा एक दिन में सिर्फ 1 सर्च ही
कर रहा था, जिसका मतलब था कि वो अपने सारे सवालों का जवाब
नहीं पा पा रहा था। इस तरह से असल जिन्दगी और खयाली जिन्दगी के बीच वाकई एक गैप
था।
यह पता लगने के बाद माइक्रोसोफ्ट ने अपने
प्रोडक्ट पर काम करना शुरू किया।
Start at the End Summary in hindi -प्रेशर
मैपिंग के जरिए यह पता लगाइए कि क्यों आपका ग्राहक आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल
करेगा और क्यों नहीं करेगा।
अब हम यह देखेंगे कि किस तरह से हम आपके
बिहेवियोरल स्टेटमेंट को असलियत में बदल सकते हैं। इसके लिए हम प्रेशर मैपिंग का
सहारा लेते हैं, जिसमें दो चीजें आती हैं
1. इनहिबिटिं प्रेशर - वो चीजें
जिनकी वजह से आपका ग्राहक आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल नहीं करेगा।
2. प्रमोटिंग प्रेशर - वो चीजें
जिनकी वजह से आपका ग्राहक आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल करेगा।
सबसे पहले इनहिबिटिं प्रेशर पर नजर डालते
हैं। एग्ज़ाम्पल के लिए हम पापिन्स (Poppins) नाम की टाफी को लेते हैं
जो कि अलग अलग रंगों में आती है।
लोग क्यों पापिन्स को नहीं खाएंगे? सबसे
पहले तो अगर यह उनके पास के दुकान में मौजूद नहीं होगा, तो
लोग इसे नहीं खाएंगे। अगर पापिन्स आपके बगल में रखा होता, तो
आप उसे जरूर खाते। लेकिन अगर वो आपके घर से 1 किलोमीटर दूर
की दुकान पर मिलेगा, तो आप उसे ज्यादा नहीं खाएंगे।
दूसरा है उसकी कीमत। हालांकि पापिन्स सिर्फ
₹5 का मिलता है, लेकिन एक बच्चे के लिए यह कीमत ज्यादा
हो सकती है। यह जितना महंगा होगा, लोग इसे उतना कम खाएंगे।
लेकिन यह जरूरी नहीं है। कभी कभी महंगी चीजें लोगों के स्टेटस को बढ़ाने का काम
करती हैं जिससे लोग उसे और ज्यादा खरीदने की कोशिश करते हैं। हम इस टॉपिक पर अगले
सबक में बात करेंगे।
अब बात करते हैं प्रमोटिंग प्रेशर की।
पापिन्स खाने में मीठे होते हैं और वो तरह तरह के रंगों में आते हैं। हालांकि
रंगों से उनके स्वाद पर या उनकी क्वॉलिटी पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन यह
वो चीज़ है जो कि हमें आकर्षित करती है। अगर वे बेरंग होते , तो हम उनकी तरफ कुछ ज्यादा आकर्षित नहीं होते। इस तरह से यह दो चीजें हैं
जो कि हमें उसे खाने पर मजबूर करती हैं।
Start at the End Summary in hindi -लोग आपके
प्रोडक्ट का इस्तेमाल क्यों करेंगे या क्यों नहीं करेंगे,
इसका पता लगाना कुछ मुश्किल हो सकता है।
पिछले सबक में हमने देखा कि किस तरह से कुछ
प्रेशर्स की वजह से एक ग्राहक आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल करता है और कुछ प्रेशर्स
की वजह से वो उन्हें नहीं इस्तेमाल करता। लेकिन यहां पर वो किन प्रेशर्स की वजह से
उसे इस्तेमाल करेगा और किन वजहों से नहीं करेगा, यह पता करना कुछ मुश्किल
हो सकता है।
एग्ज़ाम्पल के लिए हमने पापिन्स के कीमत की
बात की थी। कम कीमत होने से लोग उसे आसानी से खरीद पाएंगे, लेकिन
ज्यादा कीमत होने की वजह से लोग उसे अपने स्टेटस को बढ़ाने के लिए खरीदना चाहेंगे।
लोग ₹100 की डेरी मिल्क खरीदकर खाते हैं, इसमें कोई शक की बात नहीं है।
इसके अलावा एक दूसरी चीज़ है - कैलोरीस।
ज्यादा कैलोरीस का मतलब लोगों को उसे खाने के बाद ज्यादा ताकत मिलेगी। एक बार के
लिए ऊपर से देखने में यह लग सकता है कि यह तो एक प्रमोटिंग प्रेशर है। ज्यादा
कैलोरी देने से लोग इसे खाना पसंद करेंगे। लेकिन मामला इतना भी सिंपल नहीं है।
उनका क्या जो मोटे हैं और अपने वजन को कम
करने की कोशिश कर रहे हैं? अमेरिका में मोटापा एक बहुत बड़ी समस्या है और
ज्यादा कैलोरी खाने से उनका मोटापा बढ़ता है। इस तरह से एक तरह के ग्राहकों के लिए
वो प्रमोटिंग प्रेशर जबकि दूसरे तरह के ग्राहकों के लिए वो इनहिबिटिंग प्रेशर है।
इस तरह से अगर आप सारे प्रेशर्स को परखेंगे, तो आपको
पता लगेगा कि वो सारे प्रेशर्स हालात पर निर्भर करते हैं। एक तरह के हालात में एक
तरह के लोगों के लिए वो प्रमोटिंग प्रेशर हो सकता है जबकि दूसरे तरह के हालात में
दूसरे तरह के लोगों के लिए वो इनहिबिटिंग प्रेशर हो सकता है। तो फिर आप अपने
प्रोडक्ट को कौन सी समस्या सुलझाने के लिए डिजाइन करेंगे?
इसका जवाब हम किताब पढ़कर नहीं जान सकते।
इसके लिए आपको मार्केट में उतर कर अलग अलग तरह के टेस्ट कर के यह देखना होगा कि
लोग किस प्रेशर पर आपके प्रोडक्ट को इस्तेमाल कर रहे हैं और किस प्रेशर पर
इस्तेमाल नहीं कर रहे। सर्वे कीजिए, इंटरव्यू कीजिए, रीसर्च कीजिए और सच का पता लगाइए। आपको कभी अपने अंदाजे को सही नहीं मानना
चाहिए।
अगर आप ने पहले सबक में बताई गई बातों को
अपनाया है, तो आपको अब तक पता लग गया होगा कि कौन सी चीजें आपके प्रोडक्ट के लिए
प्रमोटिंग प्रेशर हैं और कौन से इनहिबिटिंग प्रेशर। यह जानने के बाद आप अपने प्रोडक्ट
को डिजाइन करना शुरू कर सकते हैं।
Start at the End Summary in hindi-इनहिबिटिंग
प्रेशर कम कर के या प्रमोटिंग प्रेशर को बढ़ा कर हम अपने मनचाहे बर्ताव को लोगों
में डाल सकते हैं।
इतना तो तय है कि आप लोगों के साथ जबरदस्ती
नहीं कर सकते। इसलिए आपको या तो इनहिबिटिंग प्रेशर को कम करने के तरीकों के बारे
में सोचना होगा, जिससे लोग को उन बर्ताव को अपनाने में आसानी हो,
या फिर आपको प्रमोटिंग प्रेशर को बढ़ाना होगा जिससे लोगों के अंदर उस
काम को करने की ख्वाहिश बढ़े। अब आपका काम है कि आप ज्यादा से ज्यादा तरीकों के
बारे में सोचिए जिससे आप इनहिबिटिंग प्रेशर को कम सकें या प्रमोटिंग प्रेशर को बढ़ा
सकें।
लेखक की टीम ने लोगों को फ्लू शाट्स लेने
के लिए मनाने के लिए 20 तरीकों के बारे में सोचा। लेकिन इतने सारे तरीकों
को लागू करना संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने इनमें ने बहुत से तरीकों को एक में
मिक्स किया और कुछ बेकार के तरीकों को लिस्ट से निकाल दिया। इस तरह से उन्होंने
कुछ तरीके निकाल कर उन्हें लागू किया।
इनमें से एक तरीका था काले लोगों को यह
यकीन दिलाना कि फ्लू शाट्स उनके लिए फायदेमंद है। यहाँ पर वे प्रमोटिंग प्रेशर को
बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें यह पता था कि काले लोग चर्च के पादरी पर
बहुत यकीन करते हैं। अगर वे उन्हें फ्लू शाट्स के फायदों के बारे में बताएंगे, तो काले
लोग फ्लू शाट्स लेने में यकीन करने लगेंगे।
साथ ही जब वे अपने चर्च के लीडर को इसे
सपोर्ट करते हुए देखेंगे तो वे भी सरकार के कामों में यकीन करने लगेंगे। इस तरह से
वे इनहिबिटिंग प्रेशर को कम भी कर रहे थे। यह तरीका अपनाने के बाद बहुत से काले
लोगों ने फ्लू शाट्स ले लिया।
Start at the End Summary in hindi-प्रेशर
मैप आपको बताता है कि आपकी टार्गेट पापुलेशन जिस तरह के बर्ताव कर रही है उस तरह
के बर्ताव क्यों कर रही है।
अब जब आपको सारे प्रमोटिंग प्रेशर और
इनहिबिटिंग प्रेशर के बारे में पता लग गया है, तो उन सभी को एक साथ ले आइए। जिन
बर्ताव को आप लोगों में लाना चाहते हैं उसे बीच में लिखिए। इसके बाद प्रमोटिंग
प्रेशर को ऊपर के ऐरो के साथ उसके ऊपर लिखिए और इनहिबिटिंग प्रेशर को नीचे के ऐरो
के हाथ उसके नीचे। इस पिक्चर से आपको यह साफ पता लग जाएगा कि आप जो बर्ताव लाने की
कोशिश कर रहे हैं वो किन चीजों से लाई जा सकती है और कौन सी चीजें हैं जो उसे लाने
से रोक रही हैं।
अगर इनहिबिटिंग प्रेशर ज्यादा है तो इसका
मतलब वो बर्ताव ला पाना बहुत मुश्किल काम है और अगर प्रमोटिंग प्रेशर ज्यादा है तो
इसका मतलब उसे लाना आसान काम होगा।
एग्ज़ाम्पल के लिए जब लेखक क्लोवर हेल्थ
इंश्योरेंस कंपनी के लिए काम कर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि अमेरिका के
काले लोग गोरे लोगों के मुकाबले बहुत कम फ्लू शाट्स ले रहे थ। फ्लू शाट्स एक
वैक्सीन थी जो कि उन्हें फ्लू से सुरक्षा देता थी।
लेखक ने इसके पीछे की वजह पता लगाने की
कोशिश की। उन्होंने पता लगाया कि किस वजह से काले लोग फ्लू शाट्स नहीं ले रहे थे
और क्या किया जाए जिससे वे इसे लेने लगें।
कुछ रीसर्च करने के बाद उन्हें पता लगा कि
फ्लू शाट्स लेने का प्रमोटिंग प्रेशर यह है कि इसकी मदद से आप सेहतमंद रह सकते
हैं। लेकिन काले लोगों ने कहा - मैं तो पहले से सेहतमंद हूँ। मुझे उसकी क्या जरूरत
है?
इसके बाद जब उन्होंने इनहिबिटिंग प्रेशर के
बारे में पता लगाने की कोशिश की तो उन्हें पता लगा कि काले लोग इसलिए फ्लू शाट्स
नहीं ले रहे थे क्योंकि इन फ्लू शाट्स में हर साल बदलाव किया जाता था। हालांकि यह
बदलाव उन फ्लू शाट्स को पहले से बेहतर बनाने के लिए किया जाता था लेकिन काले लोगों
का मानना था कि सरकार उनके ऊपर एक्सपेरिमेंट कर रही है।
अमेरिका की सरकार ने इससे पहले 1932 से 1972
के बीच में काले लोगों के ऊपर टस्कजी साइफिलिस स्टडी की थी, जिसमें बहुत से काले लोग मारे गए थे। इसी वजह से काले लोगों को सरकार पर
भरोसा नहीं था और वे फ्लू शाट्स नहीं ले रहे थे।
इस हालात में इनहिबिटिंग प्रेशर प्रमोटिंग
प्रेशर के मुकाबले बहुत ज्यादा था और इस बर्ताव को बदलना आसान काम नहीं था।
Start at the End Summary in hindi-लोगों के बर्ताव
को हमेशा अच्छे कामों के लिए बदलने की कोशिश कीजिए।
अब तक तो आप यह समझ ही गए होंगे कि इस
किताब में बताई गई बातों का इस्तेमाल कर के आप किसी भी तरह का बर्ताव को लोगो में
प्रोग्राम कर सकते हैं। इसका मतलब यह भी है कि कुछ लोग होंगे जो कि इन तरीकों का
इस्तेमाल गलत कामों के लिए करेंगे। इसलिए यहाँ पर आपको हमेशा अपनी नैतिकता को चेक
कर लेना चाहिए। आपको हमेशा खुद से यह सवाल पूछना चाहिए - क्या आप लोगों में अच्छी
आदतें बनाने की कोशिश कर रहे हैं या उनमें बुरी आदतें डालकर सिर्फ पैसे कमाने की
कोशिश कर रहे हैं?
एग्ज़ाम्पल के लिए भारत में बहुत से लोग
हैं जो कचड़े का डिब्बा सामने होते हुए भी उसके बाहर कचड़ा फेकते हैं। अगर आप इस
बर्ताव को बदलने की कोशिश कर रहे हैं तो अच्छी बात है। लेकिन अगर आपको लोगों को
अपने कसीनो में बुला कर जूआ खेलने की आदत लगवाने की कोशिश कर रहे हैं तो यह गलत
बात है।
आपको खुद से यह 3 सवाल
पूछने चाहिए
1. आप लोगों में कौन सा बदलाव लाने
की कोशिश कर रहे हैं और क्या वो बदलाव उन लोगों के गोल्स से मैच खाता है? अगर आप कसीनो का
ऐड करके लोगों को उसकी लत लगवाने की कोशिश कर रहे हैं तो यह गलत बात है। कसीनो में
पैसे हार कर लोग अपना सब कुछ खो देते हैं। यह उनके गोल से मैच नहीं करता, इसलिए इस
तरह के बर्ताव को प्रमोट करना गलत होगा।
लेकिन आप कह सकते हैं - "लोग चाहते
हैं कि वे खेल खेलें। लोग चाहते हैं वे आसानी से पैसा कमाएं और कसीनो की मदद से वे
ऐसा कर सकते हैं। इसलिए यह उनके गोल से मैच करता है। हम तो सिर्फ उन्हें वो दे रहे
हैं जो वे चाहते हैं"। इसलिए आपको खुद से यह दूसरा सवाल भी पूछना चाहिए
2. क्या इस बदलाव के फायदे इसके
नुकसान से कम हैं? लोगों को आसानी से पैसे कमाने हैं,
लेकिन इस रिस्क में वे अपना सब कुछ खो सकते हैं। क्या यह रिस्क लेने
लायक है? अब इससे भी बचने के लिए आप कसीनो से संबंधित
डाटा निकाल कर दिखा सकते हैं, कि कसीनो में एक व्यक्ति अगर ₹1
खोता है तो ₹2 कमा कर वापस आता है। इसलिए,
हमारे पास एक तीसरा सवाल भी है
3. क्या आप अपने काम करने के
तरीकों के बारे में खुलकर लोगों को बता रहे हैं? अगर
आपको अपने लोगों से कुछ भी छिपाने की जरूरत महसूस हो रही है, तो इसका मतलब है कि आप जो बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं वो सही नहीं है।
Start at the End Summary in Hindi -छोटे मार्केट में
अपने प्रोडक्ट को लाँच कर के यह देखिए कि आपका अंदाजा सही है या नहीं।
तो अब आपके पास बहुत से ऐसे तरीके होंगे
जिनकी मदद से आप प्रमोटिंग प्रेशर को बढ़ावा दे के और इनहिबिटिंग प्रेशर को कम कर
के अपने मनचाहे बर्ताव को लोगों में डाल सकते हैं। लेकिन क्या आपको सीधा इन दोनों
प्रेशर्स को एक साथ अपने प्रोडक्ट में डालकर उसे दुनिया भर में लाँच कर देना चाहिए?
नहीं। आपको अब तक यह नहीं पता है कि आपके
प्रमोटिंग प्रेशर और इनहिबिटिंग प्रेशर सफलतापूर्वक काम करेंगे या नहीं। ऐसे में
इतना सारा पैसा एक साथ लगाकर अपने प्रोडक्ट को नाकाम होते हुए देखने से अच्छा है
कि आप पहले छोटे मार्केट में अपने प्रमोटिंग प्रेशर और इनहिबिटिंग प्रेशर को एक एक
कर के लाँच कीजिए और देखिए कि आपकी टार्गेट पापुलेशन कैसा रेस्पान्स दे रही है। इस
तरह की स्टडी को पाइलट स्टडी कहा जाता है।
प्रमोटिंग प्रेशर और इनहिबिटिंग प्रेशर को
भी आप एक एक कर के मार्केट में उतारिए और यह देखिए कि उनमें से कौन सा प्रमोटिंग
प्रेशर या इनहिबिटिंग प्रेशर सबसे ताकतवर है। इससे आपको पूरा डाटा मिल जाएगा कि
आपकी टार्गेट पापुलेशन को किस फीचर की सबसे ज्यादा जरूरत है।
पाइलट स्टडी के वक्त आपको अपने प्रोडक्ट के
फीचर्स को बस काम-चलाऊ तरीके से बनाकर लाँच करना है। इन स्टडीज़ के वक्त अपने
प्रोडक्ट को दुनिया का सबसे बेहतर प्रोडक्ट बनाकर मत बेचिए। यहाँ पर आपका मकसद है
जानकारी इकट्ठा कर के यह पता करना कि कौन सा प्रमोटिंग प्रेशर या इनहिबिटिंग
प्रेशर सबसे अच्छा रेस्पान्स दे रहा है। यह काम जितने कम पैसों में हो जाए उतना
अच्छा होगा।
साथ ही इस समय बहुत ज्यादा पैसे लगाकर अपने
प्रोडक्ट को स्केल करने की तैयारी मत कीजिए। हो सके तो सारे काम मैनुअली कीजिए। एक
बार आपको यह पता लग जाए कि आपके तरीके काम कर रहे हैं या नहीं, तब कहीं
जाकर आप उसे बड़े स्केल पर बनाइए और दुनिया भर में लाँच कीजिए।
Start at the End Summaryin Hindi -अपना फाइनल लाँच
करने से पहले आपको कुछ और जरूरी डाटा जमा कर लेने चाहिए।
अब तक आप ने जो पाइलट स्टडी की है, उससे
आपको कुछ अंदाजा मिल गया होगा कि कौन सा प्रेशर लगाने से लोगों के बर्ताव में
ज्यादा बदलाव आ रहा है। हालांकि अभी आप ने बड़े मार्केट को टार्गेट नहीं किया है
इसलिए इस डाटा पर आँख बंद कर के भरोसा करना ठीक नहीं होगा।
साइंस में हम डाटा में मौजूद Error को
नापने के लिए P-Value का सहारा लेते हैं। यह हमें बताता है
कि हमारे डाटा में कितने पर्सेंट का एरर है। साइंटिफिक स्टडी में साइंटिस्ट अपने
डाटा पर भरोसा नहीं करते अगर उनकी P-Value 0.05 यानी 5%
से ज्यादा है तो।
लेकिन आप यहाँ पर साइंटिफिक स्टडी नहीं कर
रहे हैं, इसलिए आपके लिए P-Value 0.20 तक होनी चाहिए। इसका
मतलब है कि आपका डाटा 80% सही है और उसमें 20% का एरर है। इस तरह के डाटा पर आप भरोसा कर सकते हैं।
एक बार आपको सारा डाटा 0.20 p-value के अंदर मिल जाए, तो आपको एक और फार्मल टेस्ट करके
देखना है। यहाँ पर आपको अपने डाटा को इस्तेमाल कर के अपने प्रोडक्ट को एक बड़े
मार्केट में लाँच करना है। इससे आप यह कन्फर्म कर पाएंगे कि आपका डाटा सही था या
नहीं।
इस स्टेज पर आप सारे सिस्टम को भी तैयार कर
लीजिए ताकि बाद में आप अपने प्रोडक्ट को आसानी से स्केल कर सकें। अगर आपको अपने
प्रोडक्ट का रेस्पान्स बहुत अच्छा मिले, तो समझ जाइए कि लाँच की तैयारी
अच्छे से करनी है। जैसा भी आपको डाटा मिले, उसके हिसाब से
अपने प्रोडक्ट को स्केल करने की तैयारी कर लीजिए।
अंत में आप एक कास्ट-बेनेफिट एनालिसिस कर
के देखिए कि आपको अपने प्रोडक्ट को दुनिया भर में ले जाने के लिए कितने पैसे की
जरूरत होगी और उसके लिए आपको कितनी तैयारियाँ करनी पड़ेगी। यह देखिए कि कौन सा डाटा
पाजिटिव है और कौन सा नेगेटिव है। नेगेटिव डाटा से यह पता करने की कोशिश कीजिए कि
कहाँ पर समस्या आ सकती है और उसे आप कैसे सुलझाएंगे।
इसके बाद आप अपने प्रोडक्ट को लाँच करने के
लिए तैयार हैं।
Start at the End Summary in Hindi -कुल मिलाकर
किसी भी प्रोडक्ट को बनाने से पहले यह
देखिए कि मार्केट में उस प्रोडक्ट की डिमान्ड है भी या नहीं। अगर डिमान्ड हो, तब आप यह
पता कीजिए कि किस तरह से आप अपने मनचाहे बर्ताव को लोगों में प्रोग्राम कर सकते
हैं। यह पता कीजिए कि उस बर्ताव के प्रमोटिंग प्रेशर और इनहिबिटिंग प्रेशर क्या
हैं। इसके बाद प्रमोटिंग प्रेशर को बढ़ाने और इनहिबिटिंग प्रेशर को कम करने के
तरीकों के बारे में सोचिए। जब आपका मकसद और आपके तरीके दोनों ही नैतिक हों,
तब कहीं जाकर आप छोटे मार्केट में एक एक कर के अपने आइडियाज़ को लाँच
कीजिए और यह देखिए कि कौन सा आइडिया सबसे अच्छा काम कर रहा है। अंत में सारे डाटा
का इस्तेमाल कर के अपने प्रोडक्ट को बनाइए और दुनिया भर में लाँच कर दीजिए।
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